पटना : बिहार की राजनीति में आरसीपी सिंह का नाम इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। कभी जेडीयू के ललाट पर चमकने वाले इस सितारे की राजनीतिक परिक्रमा अब जन सुराज के आंगन में आकर थमी है। जेडीयू से निर्वासन, बीजेपी में अस्वीकृति और अपनी पार्टी आशा में निराशा के बाद, आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर के जन सुराज में शरण ली है। राजनीतिक गलियारों में उनकी इस यात्रा को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
जेडीयू,बीजेपी से आशा तक सत्ता की तलाश, अब जनसुराज का सहारा
आरसीपी सिंह की राजनीतिक परिक्रमा किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं रही। जेडीयू में रहते हुए उन्होंने सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन अनबन के चलते उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। बीजेपी में प्रवेश तो हुआ, लेकिन स्वागत वैसा नहीं मिला, जिसकी उन्हें आशा थी। अपनी पार्टी ‘आशा’ बनाकर उन्होंने स्वतंत्र उड़ान भरने की कोशिश की, लेकिन पंख कमजोर पड़ गए। आखिरकार, उन्हें प्रशांत किशोर के जन सुराज में सहारा मिला।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय: अपरिपक्वता या अवसरवादिता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरसीपी सिंह की यह परिक्रमा उनकी ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ को दर्शाती है। सत्ता की लालसा में उन्होंने हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन कहीं स्थायित्व नहीं मिला। अब जन सुराज में उन्हें ‘मोक्ष’ मिलेगा या नहीं, यह तो आने वाला ‘समय’ ही बताएगा।
सवाल बरकरार: क्या भटकना ही राजनीतिक सफलता का मार्ग है?
आरसीपी सिंह की राजनीतिक परिक्रमा बिहार की राजनीति में एक चर्चा का विषय बन गई है। उनकी यात्रा ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सत्ता की लालसा में भटकना राजनीतिक सफलता का मार्ग है? या फिर ‘सिद्धांतों’ और ‘विचारधारा’ पर अडिग रहना ही राजनीति का धर्म है? आरसीपी सिंह का राजनीतिक भविष्य अब जन सुराज के हाथों में है।
रिपोर्ट: गौरव कुमार